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सोशल मीडिया पर पंडितजी की सेवाओं से संबन्धित पूछे गए प्रश्नों के उत्तर

Pandit Ram GopalTM Associates
  • Pandit Ram GopalTM Associates: हे प्रभु, लगता है आप बहुत अधिक क्रोध में है और क्रोध व्यक्ति के विवेक का हरण कर लेता है। धर्म के मायने कभी भी लोगो के विचार से नही निकलते, यह आचरण और व्यवहार से स्थापित होते हैं। धारयते इति धर्मः अर्थात जो धारण किया जा सके, वो हो ही धर्म है और धर्म को नियम, सिद्धांत के साथ धारण किया जाता है। ना मात्र विचारो के आधार पर। जिसको और अधिक समझने के लिए ही वेद, पुराण, स्मृति और आगम तंत्र को जानने की आवश्यकता होती है।

    यतो धर्मः, ततो जयः।। यह सर्वोच्च न्यायालय का ध्येय वाक्य है। यह ही वाक्य क्यों रखा गया होगा, थोड़ा समय निकाल कर चिंतन, मनन कर लीजिएगा।

    फिलहाल PRG को इस मूल वाक्य का अर्थ भी पता है और मर्म भी, इसी कारण से यह वाक्य प्रयुक्त हुआ, कृपया इस पर प्रश्न न उठाए। क्योंकि यह आपका या हमारा निजी विषय नहीं है। थोड़ा वैदिक ज्ञान की जानकारी अवश्य कर ले, आपको वास्तविक उन्नति प्राप्त होगी।

    अब आते है आपकी बात पर, आपको यह आपत्ति ही है ना कि जहां धर्म है, वहीं फीस है।

    तो प्रभु जी, निशुल्क सेवा तब हो सकती है, जब अपने जीवन में इतना अर्जन कर लिया हो कि अब आपको जीवन यापन के लिए सिर्फ प्रभु कृपा ही आवश्यक हो। लेकिन अगर निशुल्क का बोर्ड लगाकर पीछे के द्वार से अर्जन चालू हो, तो फिर यह कैसी सेवा। थोड़ा समय निकल इसका उत्तर अवश्य दीजिएगा।

    PRG उन पुरोहित के लिए बनी है, जो विद्वान तो है, परंतु भिखारी नही, जो अपने कृत्य का भी पैसा मांग सके। शायद यह उनके व्यवहार में ही नही दिखता है, वो अपने कार्य को ही धर्म मानते है। उन्हें उचित परितोष या पारिश्रमिक दिलाना गलत है, तो ही प्रभु 100 बार भी गलत होना पड़े, तो हम लोग होने को तैयार है।

    और दूसरा यजमान को भी सुख और सही वातावरण मिले इसमें भी PRG किसी भी स्थिति में अपनी कर्मठता सिद्ध ही करेगी।

  • Pandit Ram GopalTM Associates: हम ना तो धर्म है और धर्माचार्य, हम सभी एक व्यवस्था है, जिसमे दूषित और मिलावटी पूजन सामग्री के विरुद्ध शुद्ध और प्रमाणित सामग्रियां ही पूजन के उपयोग में लाने के प्रयास में हैं। और साथ ही पुरोहित कर्म से जुड़े अशुद्धियों और आचरण को न्यूनतम स्तर तक लाकर कुशल,योग्य और कर्मठ पुरोहित का स्थापत्य ही लक्ष्य है, अब अगर यह भी दुष्प्रचार ही दिख रहा है, तो सही प्रचार का मार्ग सुझाए...?

  • Pandit Ram GopalTM Associates: श्रीमान जी, एक विप्र का नाम हो सकता है, जिससे आप वार्ता कर सकते हैं परंतु समूह या संस्था में कोई एक व्यक्ति नहीं होता है, जो आपकी इच्छा पूरी कर सके। संस्था मे आपको या तो संस्थागत प्रवक्ता या फिर संस्था प्रमुख से ही वार्ता करनी होगी।

    और यह समूह द्वारा सुनियोजित किया गया शुल्क और व्यवस्था है, जिससे यजमान अनर्गल के आर्थिक दबावो से मुक्त रहते हुए बिना आर्थिक संकट व भय को झेले अपने अभीष्ट अनुष्ठान को श्रद्धानुसार करा सके। जिसे सिर्फ उन्हे बताया गया है, ना की किसी प्रकार से बाध्य किया गया है, ना ही किसी प्रकार की अतिरिक्त मांग की गई है। यह यजमान को सुविधा और सहूलियत के लिए प्रविधानित है, जिसमे हमारे लिए यजमान की आस्था और उनका पूजन करवाए जाने की भावना महत्वपूर्ण है। जिसका भविष्य मे भी ध्यान रखा जाएगा।

  • Pandit Ram GopalTM Associates: कोशिश ही, ये की जा रही है कि जो भी पूजन करवाए,उसके सामने पूर्ण पारदर्शिता रहे, ताकि उनका पूजन कराए जाने की आस्था पंडितजी के कारण आहत ना हो, इसलिए बताए गए शुल्क के बाद कोई भी अतिरिक्त शुक्ल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अब नही है।

  • Pandit Ram GopalTM Associates: हाँ,आप सही हैं, नया व्यवसाय आ गया है और नया बिजनेसमैन भी। लेकिन विपणन करना बड़े हृदयी और साहसी और कर्मठता के धनी के ही बस का है और प्रभु की लीला देखो 1 लाख में 1 बिजनेसमैन हो पाता है। बनना लगभग हर साहसी चाहता है, लेकिन उनको प्रभु कृपा नही मिलती। क्योंकि साहस के साथ सद्विचार, सद्विचार के साथ सामर्थ , सामर्थ के साथ बुद्धि, और बुद्धि के साथ कर्मठता, और कर्मठता के साथ अनुभव, और अनुभव के बाद प्रभु कृपा हो, तो ही आप बिजनेसमैन बनते हो। यानी सही मायने में एक अच्छा बिजनेसमैन ही समाज की अमूल्य निधि होता है।

    अब व्यापार की बात, अगर दक्षिणा लेना और देना पाप और पापी की श्रेणी में होता, तो यह व्यवस्था कब की समाप्त हो गई होती। ना तो कोई दक्षिणा देता, और ना कोई ले पाता। इसका मतलब यदि कही आदान प्रदान की प्रक्रियाएं चल रही है, तो वह व्यापार की श्रेणी में ही आयेगा। लेकिन यहां धन और धनिक की बात नहीं होती, यहां भावना और समर्पण भी सम्मिलित होता है, जो बिना ईश्वरी आसक्ति के संभव नहीं है और ईश्वर आपके भाव में बसते है, ना की आपके कर्म कांडो में, कर्मकाण्ड एक माध्यम है, जो आपमें भाव उत्पन्न करता है, अगर भाव ही नहीं रहा, तो जेब भर भर के दक्षिणा लूटा दो, किस काम की। क्या फर्क पड़ेगा।

    इसीलिए पंडितजी भी थोड़ा भटक गए, और यजमान भी ये ही समझने लगा कि पैसा फेकों, पूजा देखो। भ्रष्ट विचारो के प्रभाव में अब पूजा भी धन उगाही का माध्यम बन चुका है, जिसे सुधार की थोड़ी आवश्यकता के दृष्टिगत PRG सक्रिय हुई है।

  • Pandit Ram GopalTM Associates: श्रीमान जी, ऐसे ही धंधेबाजों ने, से आपका सीधा तत्पर हम लोगो के काम और तरीके से है क्यों .... !

    तो पहली बार अपने हमारा धंधा कब और कहां देखा..

    दूसरी बात कितना समय अपने इस धंधे में, दिया....?

    अगर ये दोनो ही बाते आपने ना देखी और समझी, बस बोल दिया है, तो क्षमा करे आप को सनातनी संस्कृति की प्राण और आत्मा को जानने की सचमुच आवश्यकता है। क्षति और सुधार में सिर्फ एक ही बात अलग है, वो है किस नियत से उद्यम किया जा रहा है। यदि नियत केवल लाभ की है, वो भी किसी भी कीमत पर तो वो होगी क्षति। लेकिन अगर सुधार पर आए है, तो पहले उद्देश्य पता होना आवश्यक है, फिर उसकी प्रक्रिया। इसमें कोई न कोई तो प्रभावित होगा। लेकिन यदि 10 को क्षति हो रही हो, और पूरे समाज को लाभ मिलता हो, तो ये कहां से गलत हुआ, प्रभु समय निकले और स्पष्ट करे...?

  • Pandit Ram GopalTM Associates: हो सकता हो शायद ठीक नही है, यह दृष्टिकोण आपका हो। लेकिन बिना उद्देश्य और भविष्य की प्रक्रिया जाने, मात्र एक रेट लिस्ट देखकर सीधा गलत साबित कर देना और अपने को अच्छा बनाने के लिए यह सब हो रहा है, का यह आरोप लगाना,किसी भी प्रकार से बौद्धिकता की निशानी नहीं है।

    क्या करेंगे...? यह भली प्रकार से समझबुझ कर ही उत्तरदायित्व के साथ आगे बढ़ने का निर्णय है, जिसमे कोई संदेह नहीं है, जिसको अभी सुधारने की आवश्यकता नहीं है।

    क्योंकि सुधरा तब जाता है, जब बिगड़ा हो, लेकिन बिगड़े को फिर से सही राह पर लाना काम कराना, अर्जन करना, या सराहना बटोरना नही होता है, वो जिम्मेदारी होती है, जो बिना विवेक के निभाई नही जा सकते है। बुद्धि होकर भी विवेक शून्य व्यक्ति हानिकर ही होता है, किंतु बुध्दिविहीन होकर विवेकी होना, कभी भी हानिकर नहीं होता।

  • Pandit Ram GopalTM Associates: ख्याति प्राप्ति की इच्छा अतिज्ञानी को होती है किन्तु संस्थागत उद्देश्य इसके विपरीत होते है संस्था की स्थापना सदैव किसी उदेश्य पूर्ति के लिए की जाती है, जिसका सम्बन्ध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक और सभी के हितो में निहित होता है. जिसमे विचार, उद्देश्य, योजनाए, संकल्प, कर्मठता सभी कुछ साथ ही होता है. गौतम जी, आपको सलाह है कि पहले PRG को जाने और तब कुछ प्रत्यक्ष करे. ये ही उचित होगा, कपोल कल्पना और विचारो के आधार पर तर्क ना रखे.

  • Pandit Ram GopalTM Associates: प्रभु व्यक्ति की बात करोगे, तो वहां परिचय और सम्बन्ध होते हैं, किन्तु संस्था एक व्यक्ति नहीं होती है। संस्था के आखिरी पंक्ति का व्यक्ति भी संस्था ही होता है और संस्था तर्क और विचारो पर नहीं चलती। वह उद्देश्य और आगामी योजनाओ के अधीन होती है। इसलिए संस्था को जानना और समझना आवश्यक हो जाता है। PRG से यदि आपका हित जुड़ता है, तो PRG अवश्य ही आपके पास उचित अवसर और समय पर आयेग। वार्ता हेतु दूरभाष नंबर उपलब्ध कराये गए है, कृपया उचित समय देखकर अवश्य करे। शायद किसी हो रही बड़ी त्रुटी को पहले से ही सुधारा जा सके।

  • Pandit Ram GopalTM Associates: हां, आपकी आपत्ति बिलकुल सही है, क्योंकि अभी ही बहुत सारी समस्याएं आ रही है इस सम्बंध में, इसका हल ये ही मिला है योग्य पंडितजी की आवश्यकताओं का ध्यान PRG रखेगी, ताकि यजमान से पंडितजी दक्षिणा वसूलने से अधिक यजमान की भावना और पूजन प्रणाली का निष्काम भाव से ध्यान रखेंगे। फिलहाल अभी परिणाम ठीक ही दिख रहे है। अब आगे परिवर्तन और गति ही शाश्वत है।

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